India, Nov. 30 -- The Government of India has issued a release:

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' को सार्थक बनाते हुए काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत आज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित प्रतिष्ठित विश्वनाथ मंदिर प्रांगण में एक अत्यंत प्रेरक और संदेशपूर्ण नुक्कड़ नाटक "एकता की गंगा" का भव्य आयोजन किया गया। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार तथा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बीएचयू) के सौजन्य से आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक विरासत के अद्भुत समन्वय को सशक्त रूप से प्रस्तुत करना था।

नोडल अधिकारी प्रो. अंचल श्रीवास्तव के कुशल मार्गदर्शन में तैयार इस नाटक ने दर्शकों को गंगा की निर्मल धारा के समान एक एकीकृत सांस्कृतिक प्रवाह की अनुभूति कराई। कथा के माध्यम से बताया गया कि काशी और तमिलनाडु दो अलग-अलग भौगोलिक स्थलों के रूप में भले ही दिखाई देते हों, किंतु उनकी आध्यात्मिक चेतना, सांस्कृतिक बंधन और ऐतिहासिक जुड़ाव उन्हें हमेशा से एक सूत्र में बांधे हुए है। नाटक ने इस तथ्य को उभारकर प्रस्तुत किया कि भारत की असली ताकत उसकी विविधता में निहित एकता में है, जो सहअस्तित्व, सहयोग और सदभाव की भावना से युक्त है।

नाटक में मुख्य भूमिका सागर शॉ ने बड़े ही प्रभावशाली अंदाज में निभाई। उनके साथ मिनर्वा राइज़ादा, मेहुल अपराजिता, अद्रीजा रॉय, अनुभा सिंह, हिमांशु गुप्ता, प्रिंस राज, अंकित कुमार ओझा, देवांश पंचारिया और रक्षित मिश्रा जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों ने अपने दमदार अभिनय, सशक्त संवाद और भावपूर्ण अभिव्यक्तियों के माध्यम से दर्शकों को बांधे रखा। प्रस्तुति में शामिल प्रत्येक दृश्य ने यह संदेश दिया कि भाषा बदल सकती है, परंतु भावनाएँ और सांस्कृतिक जड़े हमें एक-दूसरे से जोड़ती रहती हैं।

विश्वनाथ मंदिर प्रांगण में उपस्थित बड़ी संख्या में दर्शकों ने तालियों और उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया के साथ इस प्रस्तुति को भरपूर सराहना दी। कार्यक्रम के अंत में प्रो. अंचल श्रीवास्तव ने कलाकारों की टीम को बधाई देते हुए कहा कि नाट्य-शिल्प समाज में सकारात्मक परिवर्तन और जागरूकता का सबसे सशक्त माध्यम है। काशी तमिल संगमम् जैसे प्रयास हमारी युवा पीढ़ी को यह समझने में मदद करते हैं कि हम सभी भारतीय एक विशाल सांस्कृतिक परिवार का हिस्सा हैं, जिसे गंगा की तरह शाश्वत, पावन और प्रवाहमान एकता की धारा जोड़कर रखती है।

इस पूरी प्रस्तुति ने यह भाव संप्रेषित किया कि भारत की आत्मा उसके सांस्कृतिक विविधरूपों में समाहित है और यही विविधता हमें एक-दूसरे के निकट लाती है। "एकता की गंगा" ने दर्शकों को यह संदेश दिया कि हमारी साझा विरासत ही हमें एक बनाती है और यही भारत की सबसे बड़ी शक्ति है।

Disclaimer: The original story of this translated version is available on Press Information Bureau.

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